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मंगलवार, 5 मई 2015

तुम और बुराँश का फूल


तुमको जब भी देखता हूँ तो कुछ याद आता है,    
याद आता है मेरे गाँव में खिलने वाला वो एक फूल,
जो एक दम तेरे होंठों के जैसा कोमल है,
जिसे लोग कहते हैं बुराँस। 
जैसी ठंडी जगह पर ये उगता है,
कुछ वैसी ही ठंडक मिलती है,
तुमसे जब भी मिलता हूँ मैं। 
बुराँस के वन की ऊँचाई तक,
तुम मेरे प्रेम को उड़ा के ले चलती हो,
और सबसे ऊंचे बुराँस के दरख्त पर,
उसकी सबसे ऊंची शाख पर, 
जो अनछुआ सा फूल,    
जो तेरी ही तरह मुस्काता है,
वही बुराँश का फूल मुझे लगती हो,
और जब मैं भटक रहा होता हूँ,
यूँ ही तनहा पहाड़ों में,
तेरी याद लिए हुए,
तब,
हाँ तब मेरी प्रेयसी,      
वो बुराँश मुझे तेरी याद दिलाता है। 
तेरे होंठो के रस सा रसीला,
मीठा तो कुछ खट्टा,
चखता हूँ जब इसकी पँखुडिओं को,
तो ताजा हो जाता है वो पहला एहसास,
के जब तुमने लबों से लबों को छुआ था,
और मेरे इज़हार-ए-इश्क पर,
हौले से कानों में मेरे,
अपना इकरार-ए-मुहब्बत का 'हाँ'  कहा था। 
भीनी भीनी खुशबू बुराँश के जंगल की,
एहसास करा जाती है तेरा इन पहाड़ों में,
और खो जाता हूँ मैं फिर से यादों में,
जब पहली बार तुमने मुझे छुआ था,               
और मेरे इज़हार-ए-इश्क पर,
हौले से कानों में मेरे,
अपना इकरार-ए-मुहब्बत का 'हाँ'  कहा था। 

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