निकल आते हैं जब पर परिंदों के, तो वो तो उड़ जाते हैं,
पाल पोस कर बड़ा करने वाले अक्सर तन्हा रह जाते हैं।
बड़ी शिद्दत से, बड़ी उम्मीद से बनाते हैं वो जो घोंसला,
बच्चे बड़े होते हैं, तो वो घर अजीब वीराने में ढल जाते हैं।
खून पसीने से जो बनाते हैं, बसाते हैं, सजाते है, घर को,
वो जब बुजुर्ग हो जाते हैं तब वो घर के कोने बन जाते हैं।
कभी फैला रहता था खुशिओं का आँचल पूरे ही घर में,
बच्चे बड़े होते हैं तो घर में ही कुछ और घर बन जाते हैं।
बच्चों को सहारा देने को, हमेशा हाथ दिया,छड़ी नहीं दी,
वो हाथ बूढ़े होते हैं,तो सब सहारे छड़ी तक ही थम जाते हैं
अपने बच्चों को पाला, अब बच्चों के बच्चों को पालते हैं,
माँ बाप जब दादा दादी होते हैं 'अक्स',नौकर बन जाते हैं।
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