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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

दर्द

जो भी ये ज़िन्दगी दे, तू उसका तराना ना बना,
दिल में दिमाग रख कर,तू  उसे दीवाना ना बना।     

दर्द जो मिला है,अश्क बन कर बहने दे उसे,
रोक कर उसको  यूँ जख्मों का निशां ना बना। 

ये क्या अब उसके किस्से लोगों को सुनाता है,
इश्क को अपने यूँ, बेवजह अफसाना ना बना। 

दिल तो दिल है, दिल को दिल ही रहने दो,
इसको बेवजह यूँ, ग़म का ठिकाना ना बना। 

ख़ुशी मिली तो जी भर के जिया था, ऐ दिल,
ग़म-ए-दौर में यूँ,मरने का  बहाना ना बना। 

जो हुआ सो हुआ, उसे तो होना ही था  'अक्स',
अब नफरतों से भरा यूँ तो, ये जमाना ना बना। 
                    -अतुल सती 'अक्स'    

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