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सुनो पुत्र तुम आरुष हो मेरे !!!
मेरे अंश, लाडले हो मेरे।
मैं हूँ सूर्य!!! मैं पिता हूँ तेरा।
प्रथम प्रकाश पुंज हो तुम मेरे,
कैसे प्रकाशित होते हैं,
ये मैं ही सिखलाऊँगा।
क्या प्रकाशित करना है?
ये पर मैं ना बतलाऊंगा।
कैसे सोचा जाता है,
मैं ये भी सिखलाऊँगा।
क्या सोचना है तुमको?
ये पर मैं ना बतलाऊंगा।
मुझसे नहीं तुमसे ही तो,
होते हैं सर्वत्र सवेरे। सुनो पुत्र !!! तुम आरुष हो मेरे !!!
कैसे ऊष्मा देते हैं,
ये मैं ही सिखलाऊँगा।
किसे उर्वर किसे करो मरू ,
ये पर मैं ना बतलाऊंगा।
कैसे जीवन जीना हैं,
मैं ये भी सिखलाऊँगा।
क्या जीवन बनाना है?
ये पर मैं ना बतलाऊंगा।
तुमसे ही जीवन मृत्यु पाते,
ग्रह जो लेते हैं मेरे फेरे। सुनो पुत्र !!! तुम आरुष हो मेरे !!!
2 टिप्पणियां:
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पुत्र के लिए पिता के मार्गदर्शक भाव
बहुत ही सुंदर लिखा है 'अक्स जी'
साधुवाद
Dhanywaad!!!
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