इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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बुधवार, 20 दिसंबर 2017
ओह मी ! या मैं ! हे मैं ! और निओ एंडरसन
गुरुवार, 7 दिसंबर 2017
नकलाकार कलाकार मेंढक
अफ़सोस वो मेंढक बहुत से राग गा सकते थे अलग अलग और बहुत ही सुन्दर गीतों को रच सकते थे पर अफ़सोस आज भी वो मेंढक उसी कुएँ में हैं बस अलग अलग तरीकों से "टर्र टर्र" करते हैं सब के सब। जिसकी वजह से वो पहला "टर्र टर्र" गीत जो सुरीला था आज बस एक शोर बन कर रह गया है। जब उन मेंढकों को बोला गया बल कुछ अफरु भी गाओ कब तक दूसरों के गानों को गाओगे? दुसरे की मेहनत को अपना बनाओगे? तो जानते हो उन मेंढकों ने टर्र टर्राते हुए क्या कहा?
शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017
अभी भी
सोमवार, 27 नवंबर 2017
एक कहानी इंसानियत और धरती की
मैं बंजर हूँ, मैं बंजर हूँ,
मैं बाँझ तुम्हारे अंदर हूँ।
मैं कैसे तुमको प्यार करूँ?
कैसे मैं तुम्हारा दुलार करूँ?
अश्कों सी मायूस राख हूँ मैं ,
कोई आग न अब मेरे अंदर है।
मैं बंजर हूँ, मैं बंजर हूँ,
मैं बाँझ तुम्हारे अंदर हूँ।
बीज जो मुझ में रोपा गया,
वो रूठ गया, वो सूख गया,
बस एक खाली गुब्बार हूँ मैं,
कोई आब न अब मेरे अंदर है।
मैं बंजर हूँ, मैं बंजर हूँ,
मैं बाँझ तुम्हारे अंदर हूँ।
-अक्स
http://atulsati.blogspot.com/2017/11/blog-post_27.html
शनिवार, 18 नवंबर 2017
मि अर सट्टी
मि सट्टी जन पड्युं ही रे गी उर्खुली मा,
कुटदू देखदू रे अफ्फु ते,
वक़्ता का मुसलोंन सटा सट।
जब भी जीणो मन करि,
जब भी मस्ती मा रेणौ मन करि,
त पैली बवल्दु छौ कि
बाद मा जीला, हँसला, खेलला, नचला, गाला,
अभी उम्र नि च,
फेर अब जब सब मिली त,
बोलदू छौं कि
अब उम्र नि रै,
त यन च दाज्यो भुल्ला, भुल्ली बैणी, बोड़ा बोड़ी, काका काकी,
जू भी यु वक़्त मिलणु च,
जी लिया जी भर की,
अभी उम्र नि, भोल उम्र नि राळी,
ये वास्ता जी लिया फटाफट।
निथर एक दिन तुम भी बोलला अक्सा जन,
बल,
मि सट्टी जन पड्युं ही रे गी उर्खुली मा,
कुटदू देखदू रे अफ्फु ते,
वक़्ता का मुसलोंन सटा सट।
- अतुल सती अक्स
सोमवार, 13 नवंबर 2017
प्रद्युम्न केस और दबाव!!!
मंगलवार, 7 नवंबर 2017
तुम्हे तो पता ही था सब
बुधवार, 4 अक्तूबर 2017
गज़ब प्यार
गुरुवार, 14 सितंबर 2017
Happy Hindi Day
शुक्रवार, 8 सितंबर 2017
कभी तो
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।
मैं सूख रहा हूँ एक पेड़ की तरह,
मेरी शिराओं में बहने वाला पानी,
मेरी आँखों का आँसू तो नहीं बनता,
पर फिर भी आँखों की कोरों से रिसकर भाप हो जाता है।
जाने कैसी बरसात है तुम्हारी यादों की,
ये जितना जम कर बरसती हैं,
उतना ही मैं सूखता जाता हूँ।
कभी तो,
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।
अब तो बस एक सूखा ठूँठ भर रह गया हूँ,
तुम गर जो एक आखिरी बार,
बस मुझे छू भर लोगी,
तो,
तो,
मैं जल उठूँगा धूधू करके,
के तुम्हारी यादों की बरसात केवल
सुलगाती है मुझे,
बेहद तकलीफ देती है मुझे,
अपनी गिरफ्त में और जकड़ती हैं मुझे,
सुलगाती हैं और बस तरसाती हैं मुझे।
सुनो !!!
सुनो न प्रिये!!!
आज़ाद करदो मुझे अपनी यादों से,
छू लो मुझे एक दफा फिर तसल्ली से,
के सुकून हासिल हो मेरी रूह को,
बस एक आखिरी बार और
तुम जला लो मुझे,
कितनी दफा यादों के सिरहाने में,
सुलगता सुलगता सोया हूँ मैं,
और तुम,
ख़्वाबों में ही सही एक बार तो मिलने आ जाओ,
कभी,
कभी तो,
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।
गुरुवार, 24 अगस्त 2017
कौन है ये शिव?
बुधवार, 23 अगस्त 2017
मेरा अनुभव
सोमवार, 24 जुलाई 2017
बच्चों सी बातें
आसमान सतरंगी कहता हूँ
बादलों के साथ खेलता हूँ
तारों की चादर ओढ़ कर,
चाँद को झिलमिल बहता हुआ,
वो जो रात को नदी को देखते हुए,
दिखता है न,
उसे,
हाँ उसी झिलमिल बहती चाँदनी को अपनी आँखों में समेटता हूँ।
और लोग कहते हैं
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
जब अचानक से एक तितली घूमती है आसपास,
और हवा में उड़ते हुए आता एक सेमल का कपास,
कोई कली कहीं जब भी खिलती है,
आहा!
बारिश की मिटटी से सौंधी हवा महकती है,
मैं नाचता हूँ, गुनगुनाता हूँ।
और लोग कहते हैं
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
रात हुई तो जुगनू पकड़ कर मैं,
छोड़ देता हूँ आसमान में तारे बनने को,
और जब चलता हूँ नंगे पाँव और मखमली लगे ओंस से भीगी घास,
कैसे कोई भूल सकता है वो अनूठा एहसास।
मैं आज भी उसी एहसास को तरसता हूँ,
और तुम कहते हो
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
-अतुल सती अक्स
रविवार, 23 जुलाई 2017
देवालय मदिरालय वैश्यालय का दोगलापन
ऊँच नीच,
ये जात धरम सब,
देवालय में होता है।
मदिरालय या,
वैश्यालय में,
ये दीनधरम,
कहाँ होता है।
मदिरालय में ,
जाके खुदको,
जग से दूर,
भगाते हैं।
घर को अपने,
स्वाहा कर के,
कैसी प्यास,
बुझाते हैं।
वैश्यालय में,
आते सज्जन,
छुप कर आते,
जाते हैं।
किसकी बीवी,
किसकी बेटी,
बस नोंच नोंच कर,
खाते हैं।
अट्हास करता,
नपुंसक पौरुष,
सिसकता है,
नारीत्व यहाँ।
भोग विलास,
और लूट खसोट,
बस ये है इनका,
पुरुषत्व यहाँ।
परनरगामी जो,
हुई,
वो तो है,
नीच यहाँ।
परनारीगामी जो,
है बना,
फिर वो कैसे,
उच्च यहाँ?
कौन है साक़ी,
कौन हमबिस्तर,
मतलब किसे,
कहाँ होता है?
तन की भूख,
मिटाने वाला,
बस गिद्ध बना,
यहाँ होता है।
ऊँच नीच,
ये जात धरम सब,
देवालय में होता है।
मदिरालय या,
वैश्यालय में,
ये दीनधरम,
कहाँ होता है।
-अतुल सती #अक्स
गुरुवार, 6 जुलाई 2017
कहानी पहाड़ी वाले बाबा की
बुधवार, 5 जुलाई 2017
पहाड़ी वाले बाबा और उसका अतीत।
मंगलवार, 20 जून 2017
खुद
यन त रजै भी च अर कम्बलु भी च मेरा काख पर,
पर माँ तेरी खुखली की निवति ते,
यन त पिताजि यख सब्बि साधन छन,
पर पिताजि जू सुख घुघूति बसूदी मा छे, घुघ्घी मा छे,
अब मि नि करलू जिद्द घुघूति बसूदी की,
रैण द्या मैंते अपरा काख मा तुम,
तुम तै भि त खुद लगदि ह्वालि म्यारि,