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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

भैजी भुल्ला की बथ: (हिन्दू धरम पर अटैक )

भैजी भुल्ला की बथ: (हिन्दू धरम पर अटैक )
"भैजी!!! अरे ओ भैजी!!! घोर अनर्थ हो गया बल। हमारा हिन्दू धरम पर अटैक हो गया। खत्म होने वाला है हिन्दू धरम। अब क्या होगा भेजी? मेरी जिकुड़ी में तो कबलाट होने लगा है।(जी घबरा रहा है)""अरे भुल्ला!!! तू भी ना क्या हो गया हिन्दू धरम को? आज तक तो खत्म नहीं हुआ बल अब कैसे खत्म होने लग गया? मैं तो अब शास्त्री भी बन गया था वेदपाठी से, मेरे ही दाँ(वक़्त) ऐसा होना था क्या? अब मैं पैसे कैसे कमाऊँगा यार?
बता तो सही हुआ क्या है? किसने किया?"
"अरे भैजी मैंने सुना बल की कोई खान है जो बहुत अमीर है, और उसने किसी ईरानी से मिल कर हम पर हमला कर दिया है। मुग़ल जो नि कर पाये जो अँगरेज़ नि कर पाये उसने कर दिया बल। टीवी पर देखा मैंने सच्ची। बड़े बड़े पंडित लोग बोल रहे थे की उसने हमारे धरम पर हमला किया है। महादेव भी उससे भाग रहे थे। उसने बोला बल बाबा लोग पाखंडी हैं। अब क्या होगा भैजी??? उसने बल पी भी राखी है बल पी के है वो।"
"अरे लाटा!!! वो तो पिक्चर है रे!!! आमिर खान की और राजू हिरानी की। तूने भी सुध्धि-मुध्धि(बेवजह) डरा दिया था। अरे उसने गलत क्या बोला बल? बाबा लोग तब से हमें बेवकूफ ही बनाते हैं। और हम गधे उन्हें भगवान बना देते हैं। आर शिवजी वाली जो बात है वो तो एक आदमी था जिसने वेशभूषा बना राखी थी शिव जी की।
और एक बात बता सड़क पर, चौराहे पर कितने लोग मिलते हैं शिव,गणेश, काली, हनुमान बन कर भीख मांगते हैं तब कख हर्ची(कहाँ खो) जाता है हिन्दू धरम के ठेकेदारों का प्रेम? तब तो सब उन्हें पैसे देकर या डरा धमका कर भगा देते हैं। तब नी होता बल अपमान? अरे वो जो समझाना चाह रहा था वो तो समझ नहीं रहा तू और इन पोंगा पंडितों की बातों में आ रहा है। तू भी न निरपट्ट लाटा है। "
"अरे लोग बोल रहे हैं की मज़ारों की चादर नहीं दिखाई अन्य धर्मो को नहीं दिखाया ठीक है मैं मानता हूँ, पर जो दिखाया उसमे गलत क्या है? सच्च में खुद को आईने में देखो तो बल। गलत तो कुछ भी नहीं था पर काम जरूर था।"
"अरे भैजी!!! ये तो वही बात है उसके कपडे मेरे कपडे से ज्यादा सफ़ेद कैसे???,मेरे को मारा तो उसको भी मारो न।
भाजपा और कांग्रेस वाली बात हो गयी। मेरा ही भ्रस्टाचार क्यों दिखाया उसका क्यों नहीं? "

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

आंदोलन

आंदोलन वो है जो सबसे पहले मन में चले,
और उस विचार को सबसे पहले,
मन को आंदोलित करना चाहिए। 
फिर उसे जज्बात से लबरेज़ हो कर,
भाषण और जागरण के रूप में,
एक पूर्ण रूप आंदोलन में ढलना चाहिए।
जो विचार केवल दिमाग में आये,
और दिल और मन में ढल पाए,
बाण वही सही जो सीधा दिल में उतर जाये,
अगर विचार बाण आपके ही मन को न भेद पाए,
तो उस बाण का धनुष पर संधान नहीं करना चाहिए। 
और अगर मन में कोई आंदोलन चल रहा है,
कोई अथक अनवरत जागरण चल रहा है,
कोई बाण है जो ह्रदय में चुभता जा रहा है,
तो उस बाण का तरकश में रहना अपमान है,
अपने हुनर के धनु पर उसका संधान करना चाहिए,
और भेद जाए सारे लक्ष्य एक ही बार में,
कुछ इस तरह से उसे लक्ष्य पर चला देना चाइये,
ऐसे विचारों को अटल अतुल आंदोलन में ढलना चाहिए।
क्योंकि,
आंदोलन वो है जो सबसे पहले मन में चले,
और उस विचार को सबसे पहले,
मन को आंदोलित करना चाहिए। 
फिर उसे जज्बात से लबरेज़ हो कर,
भाषण और जागरण के रूप में,
एक पूर्ण रूप आंदोलन में ढलना चाहिए। - अतुल सती 'अक्स'

उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए ।


सही ही तो कहा है कि मुज्जफ़रनगर कांड में जो हुआ उसके लिए उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए। इसमें क्या गलत कहा है?
अब क्यों उबल रहे हो अब ये बातें सुन कर। उत्तराखंडी मुख्यमंत्री को उत्तराखंडियों ने ही तो चुना है।   
मैं तो कहता हूँ कि उत्तराखंड की इस दुर्दशा के लिए सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंडी ही दोषी है और कोई नहीं। और आज भी वक़्त है हर उत्तराखंडी को सच में माफ़ी मांगनी चाहिए, माफ़ी मांगनी चाहिए उत्तराखंड से(केदार खंड और मानस खंड से), उन लोगों से जिन्होंने खटीमा, मसूरी, श्रीनगर और मुजफ्फरनगर में गोली खाई, जिनके बलात्कार हुए, उन शहीदों से माफ़ी मांगो। मांगो माफ़ी अपने पापों के लिए जिन लोगों ने कहा कि मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा, उनको जिताया भी और मुख्यमंत्री भी बनाया। जिन्होंने उत्तराखंड लूटकर बाहर अपने महल बनाये उन्हें किसने चुना? क्यों चुना? 
वो लोग भी तो उत्तराखंडी ही हैं बल जिन्होंने खुद को क्रांति कारी बोलके खुद को सत्ता के लिए गिरवी रख दिया। वो क्रांतिकारी अपना दल तक एक नहीं रख पाए। और आजकल हुंकार भर रहे हैं उनको १६ साल लग गए नींद से जागने में बल।  उत्तराखंड बनके सुनिन्द स्वेगये थे वो।  
उत्तराखंडियों को इस बात के लिए भी माफ़ी माँगनी चाहिए जब उत्तराखंड बना और मैदानी इलाकों को इसमें जोड़ दिया गया और उत्तराखंडियोँ ने उसे क्यों स्वीकार कर लिया। आज का उत्तराखंड ये कैसा पहाड़ी राज्य है जहाँ विधान भवन में पहाड़ से ज्यादा गैर पहाडियों का प्रतिनिधित्व है। उत्तराखंडियों ने ही तो ये किया ये अनर्थ, मौन सहमति किसकी थी? क्या इसके लिए माफ़ी नहीं माँगनी चाहिए?
    
उत्तराखंड से ढ़ाई लाख परिवार बल पलायन कर गए वो भी तो उत्तराखण्डी ही ठैरे।अब जिन्होंने पलायन किया बल वो भी उत्तराखंडी ठैरे और जिसकी वजह से पलायन हुआ वो भी उत्तराखंडी ठैरे। तो बल अब कौन माफ़ी मांगेगा और किस किस से?              

बल कोदा झंगोरा खाएँगे उत्तराखंड बनाएँगे। सोलह साल बाद कोदा झंगोरा उगाने लायक भी नहीं रहा उत्तराखंड। डैम डैम से डामिली ये पहाड़ो बरमंड। आज प्रधानमन्त्री बोलते हैं बल उत्तराखंड गढ्ढे में है उसे निकालो बल, पर इसे खाड़ उन्द केन डाली? कोई मेरे को भी बथाओ बल, इसके लिए उत्तराखंडी क्यों न मांगे बल माफ़ी? पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ी ही नहीं बन पायी अभी तक बल कौन जिम्मॆदार है इसके लिए? देबता भी दोष हो हो कर थक गए पर उनको न नचाने का और दोष लगाने के लिए क्यों नहीं माफ़ी मांगनी है बल?
हमने खुद ही तो बल धकिया धकिया कर इस उत्तराखंड को खंड खंड कर के खाड़ उंद डाला। पलायन पर रोने वालों, भेर देस वालों ते कैन अपरी जमीन बेचीं? किले बेची? जेन बेची वो भी तो उत्तराखंडी ही ठैरे बल। अपरी पितरों की कूड़ी, पुंगड़ी बेचने वालों माफ़ी मांगो!    
पर माफ़ी कैसे मांगे और किससे मांगे बल अब। कौन बताएगा की कौन जिम्मेदार है? कौन बचाएगा अब बल? अब तो बल मवासी घाम लगी ही जाएगी क्योंकि उत्तराखंड में दो किस्म की प्रजाति रहती हैं( कुमाउँनी गढ़वाली नहीं रे !, सवर्ण दलित नहीं रे ! जजमान बामण भी नहीं रे ! गंगाड़ी सारोला भी नई बल! छि भै रावत नेगी भी नि रे !) बल वो प्रजाति हैं गंगाधर और शक्तिमान।
सारे नेता, सारी पार्टियाँ, सारे वोटर, NRU(नॉन रेजिडेंट ऑफ़ उत्तराखंड) और उत्तराखंडी (बेचारे जो पलायन नहीं कर पाए) सब या तो गंगाधर हैं, या फिर शक्तिमान।
और ये एक ओपन सीक्रेट है बल गंगाधर ही शक्तिमान ठैरा। और ये बात अगर तुमको नहीं पता है तो माफ़ी मांगो!!! मांगो माफ़ी !!!              
                                               - अतुल सती 'अक्स'

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

सपने देखो और पूरा करो

पता मैं क्या सोचता हूँ, अगर मैं कोई काम नहीं कर पाया न इस दुनिया में अपने हिसाब से, मैं कभी नहीं चाहूँगा की मेरा बेटा उसे मेरे लिए पूरा करे, वो भी मेरे हिसाब से।
ना ही मैं कोई जी तोड़ मेहनत करूँगा उसे उसकी मर्जी के खिलाफ(या उसके दिमाग में अपनी सोच डाल कर) उसे वो बनाने के लिए जो मैं चाहता हूँ। उसकी अपनी ज़िन्दगी है मेरी अपनी।      
मेरा बेटा "आरुष" जो करना चाहेगा अपने हिसाब से, जो भी वो बनना चाहेगा मैं उसमें ही खुश हूँ।
आजकल आप कोई भी रियलिटी शो देखें, (मैं अपने माबाप का सपना पूरा करना चाहता हूँ, मेरे पाप ये चाहते थे... वो ये नहीं बन पाए.... मैं चाहता हूँ मेरा बीटा/बेटी वो बने... ये बने.... मोहल्ले में नाम होगा।) मतलब क्यों? क्यों कोई किसी और का सपना पूरा करे क्यों? तभी तो अधिकतर लोग आज कल अपने छेत्र में अच्छे नहीं हैं। मन मार कर सब काम कर रहे हैं।     
जब मेरे सपने हैं तो उनपर अधिकार भी मेरा है और उसे पूरा करने का फ़र्ज़ भी मेरा ही है।  मेरी संतान का सपना उसका खुद होगा उसे इस काबिल बनाओ कि वो अपने सपने पूरे कर सके उससे पहले वो खुद सपने देख सके, उसे पाल सके जी सके। 
पहले ही बच्चों पर स्कूल का बोझ होता है, उस पर संस्कार, संस्कृति, मोहल्ले वाले, उसके बच्चे इसके बच्चे, नाते दार रिश्तेदार और फिर ऊपर से माबाप के अधूरे ख्वाब।                      
(इसे दंगल से जोड़ कर न देखें, क्योंकि हमारे जीवन में अधिकतर लोग अपने माँबाप का ही सपना पूरा करने में मर खप जाते हैं,और फिर हम जो चाहते हैं वो नहीं कर पाते.... और तब हम अपनी संतानों से अपने सपने पूरा करवाते हैं और फिर वो अपनी... )
इस चक्र इस कुचक्र को तोडना होगा, किसी को तो, कभी तो इसे तोडना होगा। मैं तोड़ रहा हूँ, क्या आप भी तोड़ेंगे? अपने बच्चों के लिए मैंने सुना है आप लोग कुछ भी कर जायेंगे सच्ची !!!! तो उन्हें उनके सपने पूरे करने दो। अपने सपने खुद पूरे करो क्योंकि वो आपके हैं।  सपने देखो और पूरा करो।     
मैं किस्मत वाला हूँ जो मुझे मेरे माँ बाप ने अपना कोई सपना नहीं दिया, और मुझे ख्वाब देखना सिखाया, उसे पूरा करना सिखाया और मेरे सपने को पूरा करने को मदद की। मेरे जैसे बहुत से बच्चे नहीं जिनके माँबाप समझदार हैं।  लेकिन क्या हम समझदार हैं? सोचिये।  आप क्या क्या नहीं थोप रहे हैं अपने बच्चों पर। 
उनको ख्वाब देखने दो पूरा हो न हो पर हौसला दो उसको पूरा करने की कोशिश करने के लिए उससे भी पहले उन्हें ख्वाब देखना सिखाओ!!! उनका ख्वाब उनका अपना।           
                 - अतुल सती 'अक्स'
http://atulsati.blogspot.com/2016/12/blog-post_76.html                  

भैजी भुल्ला की बथ:(मोदी अर उत्तराखंड)

भैजी भुल्ला की बथ:(मोदी अर उत्तराखंड) 
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"भैजी भैजी !!! मी भि आज गयुं छौं मोदी जी ते सुणनो, तुम किले नि आये बल?" भुल्ला अपनी साँसों को संभालते हुए बोल रहा था।  
भैजी : क्या बोला बल मोदी जी ने? चाहिए की नहीं चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए?
    
"अरे भैजी तुम भी न ! मोदी जी ने कहा बल अब पहाड़ का पानी अर पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आएँगे। बल ऐसी सड़क बनाई जाएगी बल सीधा चारधाम चम्म करिकी पहुँच जाएँगे बल। सड़क बनेंगी तो बल काम आएगा, पर्यटन आएगा गड्ढे खुदेंगे, बोझा ढोएंगे, दूकान खोलेंगे हर उत्तराखंडी को बल उत्तराखंड में ही काम मिलेगा बल।"

भैजी: " अरे वाह !!! यु त भिजाम सुंदर बथ च। पर सिरोबगड़ जन रगड़ भगड़ ते कणके रोकला? पाणी बल पहाड़ का डाम पर डाम बणेकी रुका हुआ ही है, जु यु डामन डमयान छन हम जु यु टाइमबम च हमारा मुण्ड मा वेका बारा मा भी कुछ बोली क्या कैन मोदी जी थें? 
जवान जु अगर रूक्यां छन कुई पहाड़ पर, उनको तो बल "डेनिस" "भांग" और "गाँजा" उगा कर तो सरकार काम ला ही रहे हैं।  पहाड़ का पानी और पहाड़ का जवानी डेनिस को पीने के काम आ रही है, ये भी बताया किसी ने उन्हें बल?
गड्डा खोदने को बिहारी हैं, हम पहाड़ी कहाँ काम करते हैं? बोझा ढोने को बल डुटियाल हैं यहाँ, पर्यटन के लिए बाहर के भू माफिया हैं, दूकान-बिज़नस के लिए देसी हैं, उत्तराखंड के विकास के लिए उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? वो तो बल दिल्ली सजा रहे हैं, मुम्बई सजा रहे हैं, देस सजा रहे हैं विदेश सजा रहे हैं। प्रवासी हैं, NRU (नॉन रेजिडेंट ऑफ़ उत्तराखंड) हैं।         उत्तराखंड के विकास के लिए उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? ये भी बताया बल किसी ने मोदी जी को। 
बल ५-५ सांसद भेजे उन्हें उनमे से किसी ने तो बोला होगा? उत्तराखंड में उत्तराखंडी कहाँ हैं बल? जो हैं वो पहाड़ी कहाँ हैं बल, और जो पहाड़ी भी हैं तो वो भी त बल देस जाने की फ़िराक में हैं बल "

भुल्ला: बथ तो सही बोली बल भैजी तुमुन। यख उत्तराखंड मा उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? अपरा जगदम्बा चमोला जीन भालू ही बोली छौ " जु छन वु उंद गया छन, यख सुख्यां मुंगरौट रयां छन"
दिव्या रावत जन काम करना पड़ेगा, शेखर पाठक जैसा असकोट-आराकोट ( पहाड़ ) करना पड़ेगा क्या? कर्नल कोठियाल जैसा कुछ करना पड़ेगा क्या? 
माधोसिंह भंडारी बन के खुद ही कूल खोदनी पड़ेगी क्या? मतलब मैं भङ्गलु नहीं उगाऊँ? डेनिस न पिलाऊँ? 
वो रावत भैजी नाराज़ हो जायेंगे, अर अगर मोदी भैजी की बात नहीं मानूँ तो मोदी नाराज़ हो जायेंगे।             
बोला भै !!!तब क्या कारला भैजी? 

"अरे भुल्ला हम लोग न ग्यों छन, अर राजनीतिक पार्टी चक्का। पिसना त हमको ही ठैरा बल।" 
                                                       

                                 https://atulsati.blogspot.in/2016/12/blog-post_27.html
     

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

पुराण- कुरान-अक्स की बातें


मुझे भगवान् का पुराण स्वीकार है, 
मुझे अल्लाह का कुरान स्वीकार है। 
ढोंगी पोंगा पंडित का पुराण पुराण नहीं,
अढ़ियल दढ़ियल मुल्ले का कुरान कुरान नहीं।
जो कल हुआ, वो कल था, वो कहीं से भी आज नहीं, 
ईश्वर मेरा तुम्हारे किसी भी कर्मकांड का मोहताज़ नहीं,
अल्लाह मेरा झूठी अज़ानों के हल्ले का मोहताज़ नहीं।
तुम मन से उसकी पूजा करो, इबादत करो,
हर दफ़ा उठ कर गर सो जाओ  
हर दफ़ा गर सो कर उठ जाओ,
तो उसका धन्यवाद करो,
उसके तुम शुक्रगुज़ार रहो,
याद रखो इस अक्स की बातें,  
तुम उसके मोहताज़ हो, वो तुम्हारा मोहताज़ नहीं। 
जो कल हुआ, वो कल था, वो कहीं से भी आज नहीं, 
ईश्वर मेरा तुम्हारे किसी भी कर्मकांड का मोहताज़ नहीं,
अल्लाह मेरा झूठी अज़ानों के हल्ले का मोहताज़ नहीं।  
   
- अतुल सती 'अक्स'- Atul Sati 'aks'

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

अक्स कु एक सवाल

 

जै ते तुम घौर बोल्दा छन,वू घौर कख च?
जथा तुम बोलणा छन, उथा शोर कख च?
वू त भुखू छौ चार दिनों कू, वू चोर कख च?
मिठै चोरी करी जेन ,वू मिठै मिलावटी छै,
खूनों रिश्ता छैं त च पर अब, वू जोर कख च?
कख हर्चीगिन भैजि की डाँट, भुल्ले की जिद्द, तुमुन त अपरा ही भै की जमीन छीनी ल्याई,
ज्यूँन अपरा बच्चों ते सब धणी त्यागी 'अक्स',
जै मकाना का हिस्सा होन्दा, वू घोर कख च? ऊं बुए बुबा ते त्यागण वालु, कमजोर कख च?
-अतुल सती 'अक्स' 

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

भैजी भुल्ला की बथ:(हनीफ़ रावत अर उत्तराखंड)

भैजी भुल्ला की बथ:(हनीफ़ रावत अर उत्तराखंड)  
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भैजी!!! तुमुन भी सुणी बल हनीफ़ रावत भैजीन हर जुम्मा मा डेड़ घंटो अवकाश घोषित कर दिया है। कहीं अपना उत्तराखंड उत्तराखंडिस्तान तो नहीं बन रहा बल? कभी छठ की छुट्टी त अब जुम्मे की। 
हम पर भी तो वो देबता ढुकाया था उसको नचाने की छुट्टी देंगे बल जेई साहब??? अच्छा हर मंगल अर शनिबार ते हमें पूछ भी करानी होती है पुछेर से, छुट्टी देंगे बल क्या बड़े साहब? देबता तूशता ही नहीं है। 

भैजी: अरे भुल्ला तू भी न लाटा है, हम भोटर थोड़े न हैं जो हमें छुट्टी मिलेगी बल। अच्छा एक जजमान को भोट कौन बामण देगा? ऊपर से वो कुमैं है गढ़वाली किले देंगे भोट? हम सरोले भी हैं रे हम गंगाड़ी को भी भोट नहीं देते और त और अपर ही गौं के मल्ले खोले वालों को भी हम भोट नहीं देते। अर हाँ बोड़ीन वू नरसिंग ढुकाया था न हम पर जिस पर माँ ने अपना भैरव पुकारा था तो भोट त हम अपरा ही भैजी को भी नहीं दे पाएंगे। 

भुल्ला: पर भैजी देबता को तो तुषाना ही है, हमने जो लगोठीया लाया है उसका क्या? छुट्टी नि मिलेगी त कण के नचै होगी? दोष लगेगा देबता का?

भैजी: अरे देबता को टक्कर देने के लिए सैद (पीर बाबा) भी त आजकल नचा रहे हैं, वो भी तो दोष लग रै हैं।
सब्बिया सब्बि दोष छन हुयां ये पहाड़ पर। जनि कण हँकार लगयूं च कण उत्तणदंड हयूं च?

भुल्ला: त भैजी ये दफा चुनाव मा बल बिगास की बथ नहीं होगी बल? स्थायी राजधानी, विकास, केदार आपदा का गबन, भू-शराब-शिक्षा-खनन  माफिया राज, पलायन, बेरोजगारी की बात नहीं होगी बल? 

भँगलू ज्यादा ही खै ली ये मास्तन!!!

गढ़वाली कुमाउँनी जौनसारी भाषा संस्थान तो बनाया नहीं उर्दू अकादमी बना दी बल नकली राजधानी देहरादून में। 
इस्कूल त बनाया नहीं, डोबरचान्ठी पल बने नहीं टेहरी में मदरसा बना दिया बल।   
देबभुमी भी बल अस्साम अर बंगाल जन हुएजालु? मिन सुणी बल उत्तराखंड तीसरा नंबर पर है मुस्लिम जनसँख्या को सबसे तेजी से बढाने में।   

भैजी: सही सुनी भुल्ला तिन। तीसरू च उत्तराखंड भारत मा मुसलमानों की बढ़ती आबादी ते। पर हम यखुली यखुली क्या कर सकते हैं? जो कर सकते हैं वो तो बल NRU बने हुए ठैरे बल !!! इन्टरनेट पर ही ता बल हो हल्ला करेंगे। आंदोलन भी बल फेसबुक पर चलाएंगे। मजबूर जो ठैरे बल। 
साला हम उत्तराखंडी(पहाड़ी) मजबूर बड़े हैं यार जो NRU हैं वो बल मजबूर हैं फ्लैट के कुमचरे के लोन के लिए नाच रहे हैं और हम यहाँ हंकार-जनकार के लिए नाच रहे हैं। कोई बल दारु पी कर नाच रहा है त कोई बल पहाड़ छोड़ कर प्लैन (पलाइन) के लिए नाच रहा है।  यु कण देबता ढुकाया है इन नेताओं ने बल सब्बिया सब्बि झम्म जकड़ियाँ छन अर सब्बियाँ सब्बि नाचना छन। 

और उसके बाद दोनों भैजी और भुल्ला ने पव्वा गटकाया और सो गए, कुछ देर पैले वो जिस पुछेर से मिलने गए थे वो भी बल देहरादून शिफ्ट हो गया। 

        
 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

जख्म

तेरा दिया जख्म बिल्कुल इस मौसम सा ही है,
सर्द ही रहता है,हमेशा हरा हरा सा ही है।
खाली खाली सी है तेरे बिन मेरी ये जिन्दगी,
सभी कुछ खाली है,दिल पर भरा भरा सा ही है।
ये किस तरह के दरिया-ए-इश्क़ में हूँ मैं,
दिल डूबा हुआ है,जिस्म पर तरा तरा सा ही है।
उम्र तमाम तेरे साथ ही गुजारने की हसरत है,
एक ही अरमान है और वो भी धरा धरा सा ही है।
नब्ज़ टटोलकर मेरी वो कहने लगा अक्स,
मरा ही नहीं,अभी जिन्दा है, पर जरा जरा सा ही है।
                                       -अतुल सती अक्स

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

मैं और मेरा मित्र


मैं अपने परम मित्र के धाम,
खाली हाथ, बिना किसी काम।
भीतर मैं था और बाहर बैठा वो, 
मैं बाहर आया तो भीतर आया वो,
कौन अब कौन है भूला सब नाम, 
पहुँचा जब, 
मैं अपने परम मित्र के धाम, 
खाली हाथ, बिना किसी काम।


सोमवार, 12 दिसंबर 2016

मैं और मेरा अक्स

नाराज़ हूँ बहुत मैं तुझसे,
मेरे अक्स,   
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था, 
जैसा मैं चाहता था। 
तुझे कहा था कि,
तू ये करना,
ऐसा करना, 
ये मत करना,
ऐसे नहीं, वैसे करना,
ये नहीं वो अच्छा है, 
ये झूठा है वो सच्चा है,
इसकी कोई औकात नहीं ,
उसका बड़ा रुतबा है,  
तू वो ही बनना।
क्या क्या कहा था,
क्या क्या चाहा था ,
तुझे मैं सूरज बनाना चाहता था,
इस अँधेरे से आसमान का। 
लेकिन,         
नाराज़ हूँ बहुत मैं तुझसे,  
मेरे अक्स,
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था, 
जैसा मैं चाहता था। 
पर,
सच कहूँ तो, 
झूठा है मेरा ये गुस्सा तुझ पर,
मैं खुद ही वो न बन पाया,
जो मैं चाहता था, 
जैसा मैं चाहता था।
फिर कैसे तुझ पर नाराज़ हो सकता हूँ मैं,
मैं जो खुद चाहता था होना,
वो न हो सका,
जैसा मैं बनना चाहता था, 
जो बनना चाहता था,     
जो करना चाहता था,
जो सही था मेरे लिए,
जो अच्छा था, सच्चा था,
वो मैं न बन सका। 
नाराज़ हूँ बहुत मैं खुदसे,
मेरे अक्स,  
मैं वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था, 
जैसा मैं चाहता था। 

इश्क

इश्क में,
सजा भी है, 
और, 
इसका इक
मजा भी है।

सुरूर है,
गुरूर है
इश्क़ में,
तेरे,
'अक्स',
जरूर है,
जरूर है।

निगाह में,
तेरी हैं,
सनम,
बला बला की,
शोखियां।

देखती हैं,
जब मुझे,
गिराती हैं,
ये,
बिजलियाँ।

के बस,
तुझे ही
देख के,
मेरी,
सुबह औ,
शाम हो।

तेरी ही,
मस्त,
निगाह से,
मेरे,
इश्क का,
हर जाम हो।

अतुल सती 'अक्स'

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

परिवार को बचाइये

अरे !!! हम शरमाते हैं,
पर,
जनसँख्या खूब बढ़ाते हैं।

अरे !!! हम लिहाज करते हैं,
और,
खुद को लाइलाज करते हैं।

अरे !!! महंगाई ने कमर तोड़ दी,
और,
छठे बच्चे के वक़्त, उसने दुनिया छोड़ दी।

अरे !!! ये शिक्षा हमारी संस्कृति नहीं,
तो,
खुजराहो, कामसूत्र क्या हमारी कृति नहीं?

अरे !!! तो क्या करूँ? 
कैसे करूँ? 
कुछ तो सुझाईये !!!
......तो आप,
मत शर्माइये, 
कहते जाइये, 
सुनते जाइये।
एड्स, यौन रोग, 
असुरक्षा से सबको बचाइये।
बड़े, छोटे, 
सब को बात खुल कर बताइये।
कंडोम लगाइये, 
परिवार को बचाइये।
                      - अतुल सती 'अक्स'

बुधवार, 30 नवंबर 2016

बोलो कौन ?

अफरातफरी बदहवासी में, 
वो कह रहे हैं कि हम शांति चाहते हैं,
जो खुद ही दंगे करा रहे हैं। 

दुश्मन छाती पर चढ़ आया है, 
वो कह रहे हैं मुहँतोड़ जवाब दिया जायेगा,
जो असल में मुहँ छुपा रहे हैं।

स्त्री सशक्तिकरण होगा,
वो कह रहे हैं स्त्री सम्मान सर्वोपर्रि है,
जो शहर में कोठे चला रहे हैं। 

देश फिर होगा सोने की चिड़िया,
वो कह रहें हैं गरीबी, बेरोजगारी मिटाएँगे, 
जो विदेशी खाते छुपा रहे हैं। 
                    - अतुल सती 'अक्स'

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

अखबार

आज सुबह एक ख्वाब में,
मैं पढ़ रहा था कुछ खबर,
आज ही के अखबार में। 

खबर तरक्की की,
खबर खुशहाली की,
आज कहीं डाका न पड़ा,
आज कहीं कोई न मरा,
न कहीं कोई कोई बहु जली,
न ही कहीं कोई शहीद हुआ,

हँसते हुए इंसानों के चेहरे,
न हिन्दू और न मुसलमानों के चेहरे,
खेत खलिहानों के सुंदर रंग,
पहाड़ों जंगलों समुंदरों की उमंग,
नहीं आज कोई सड़क पर मरा,
न ही कोई ठण्ड से अकड़ कर मरा,
बिना स्मोग के, गुनगुनी धूप में,
कभी ठंडी बयारों के रूप में,
           
आज सुबह एक ख्वाब में,
मैं पढ़ रहा था कुछ खबर,
आज ही के अखबार में। 
          
नहीं तो हमेशा दुर्गंध ही थी आती,
कूड़े के जलने की,
बहुओं के जलने की,
खून से लिपटा आता था,
हर रोज़,
मेरे घर अख़बार आता था,
हर रोज,
शहीदों की ख़बरों से पटा हुआ ,
अस्मतों की लूट से लिपटा हुआ,
डरा डरा खुद और मुझको डराता हुआ,
हर रोज़।   
वही खबरें पढ़ो बार बार, 
पढ़ो !!! डरो !!! मरो !!!
हर रोज। 

जब भी खोलता था मैं,
अख़बार,
बेहिसाब चीखता,
सिसकता वो,
लगातार,
कहीं कोई मरा,
रोता बिलखता,
परिवार,
कहीं नेता चोरी करते पकड़ा,
कहीं कोई चोर नेता बनके निकला,
पहनता हार, 
बाबा जी के चमत्कार, 
बाजार से किसानों की हार,
लहू से भीगी,
सूखें खेतों की,
कातर पुकार,
कान फटने लगते थे,
सुन सुन के ये ख़बरें,
हर रोज, 
लगातार,  
बार बार। 

हर बार हर रोज ख्वाब में,
हर रोज के इस डरावने एहसास में,
बेतरतीब दुनिया के,
बेतरतीब खाव्ब में,  
आज आया कुछ सुकून,    
जब,  
आज सुबह एक ख्वाब में,
मैं पढ़ रहा था कुछ खबर,
आज ही के अखबार में।           
  
पर तभी नींद टूटी,
सुनके अखबार  घंटी,
ख्वाब कहीं हक़ीक़त तो नहीं हुआ?
ये सोच कर, अखबार खोल लिया,
के तभी  कुछ बूँद लहु की टपकी फिर आज,
फिर वही चींखें, वही ख़ामोशी,
फिर वही लाश जलने की गंध,
लूट खसोट हत्या की दुर्गन्ध, 
फिर वही आँसुओं की कहानी,
कोड़ियों के दाम बिकती जवानी,
फिर हो गया मासूम बच्ची का बलात्कार,
फाड़ के, जला के, राख मिटटी में दबा के,
दफ़न कर दिया मैंने वो बाजार,
जो लाता था मनहूसियत मेरे घर,
कहते हो जिसे तुम अखबार। 

कुछ भी नहीं बदला,
आज के समाचार में,
झूठ निकला सबकुछ,
जो भी, 
आज सुबह एक ख्वाब में,
मैं पढ़ रहा था कुछ खबर,
आज ही के अखबार में।       
                    

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

किले नि होन्दु?


थक गयूं मी यखुलि रै रै की, क्वी चमत्कार किले नि होन्दु?
रोज सुबेर, मी बीजी त जांदू छौं, पर मी ज़िंदू किले नि होन्दु?

अपणो का दियां दर्द मा जी जी कर, अब यन आदत हुएगी मैते,
अब जब कोई बिराणू दर्द भी देन्दुं च, त दर्द किले नि होन्दु ?

मेरा भीतर अब भी कोई ज़िंदू छैं त च, पर मी अब ज़िंदू नि छौं,     
वैध जी नाड़ी टटोली की सोचणा छाँ कि मी ज़िंदू किले नि होन्दु?         

सरी उम्र ब्याज मा ब्याज ही देण लग्युं च मी,तेरी माया का कर्जा मा,  
मी खुद खत्म हुएगी, पर तेरु यु माया कु कर्ज़ खत्म किले नि होन्दु?   
     
यु समाज च जज ,मेरा आँसू छन गवाह,अर दिल च मेरु वकील,
मिन हार जाण यु मुकदमा 'अक्स', यु रफा दफा किले नि होन्दु?
                                                               -अतुल सती  'अक्स'

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

काश!!!

काश!!! दूसरों की बेमानी पर, 
हम जान कर अन्जान न होते।
माना कि सब ईमानदार नहीं हैं,
पर अगर ये कुछ बेईमान न होते,
तो हम यूँ कतारों में लगे लगे,
हैरान न होते,यूँ परेशान न होते।

काश!!! दूसरों की बेमानी पर, 
हम जान कर अन्जान न होते।

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

मेरे जवाब - आपके सवाल

बेफजूल बातों से, लोगों को,बहकाता क्या है?
क्या तू खुद है,और लोगों को,बताता क्या है?

कब का बाहर,कर चुका है,तू  खुदा को,दिल से,
तो अब अज़ानो में,उसे आवाज़,लगाता क्या है?

यूँ तो भेजा था,तुझे उसने, बना के तो इंसान,
पर नाम-ए-दीन पर तू,खुद को,बनाता क्या है?

एक जावेदा सी ज़िन्दगी बक्शी है तुझको उसने,
तू इश्क छोड़,नफरत के, कांटे उगाता क्या है?

सियासत से,सरेआम क़त्ल कर,इंसानियत का,   
लाशों ढेर पर, बैठ,अब ये अश्क बहाता क्या है?

धीरे धीरे तू भी इस शहर सा बन रहा है 'अक्स',
दिल तेरा क्या कहता है और तू सुनाता क्या है?
                                      -अतुल सती 'अक्स'

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

रामायण काल के घटनाक्रम: मेरी दृष्टि में


रामायण काल के घटनाक्रम: मेरी दृष्टि में 

रावण ब्राह्मण पुत्र था और माता रक्ष कुल की जो ब्राह्मण कुल से ब्याहता हो कर ब्राह्मण हो गयी थी, फिर भी रावण को रक्ष कहा गया। जबकि संतान हमेशा ही पितृ पक्ष कुल का प्रतिनिधित्व करती है, मेरी दृष्टि में रावण सदैव ही ब्राह्मण कुल श्रेष्ठ रहा है जो आर्य समाज के लिए सदैव चुनौती रहा और आर्य सभ्यता के अनुसार पथ भ्रष्ट हो गया था, क्योंकि रावण खुद एक आर्य पुत्र था और उसने आर्यों का साथ देने के बजाय रक्ष जाति के उत्थान के बारे में सोचा।

ठीक वैसे ही जैसे बाली और सुग्रीव जो की इंद्र-आरुणि  और सूर्य-आरुणि पुत्र होते हुए भी वानर कुल श्रेष्ठ कहलाये और वो भी आर्य नहीं थे, वानर जाति में जो बलवान होता था समूह का नेतृत्व करता था समस्त स्त्रियां उसकी दासी होती थी ये आज भी वानर जाती में होता है किन्तु ये आर्य सभ्यता के अनुरूप नहीं था इसीलिए श्री राम को क्षत्रीय धर्म को त्याग कर छिप कर बाली संहार करना पड़ा।
विभीषण भी रावण और कुम्भकरण की तरह ब्राह्मण-रक्ष पुत्र था किन्तु उसे सम्मान ब्राह्मण रूप में मिला क्योंकि उसने आर्य सभ्यता के सबसे प्रतापी राजा योद्धा श्री राम का साथ दिया किन्तु धर्म का साथ देने के पश्चात् भी उसने अधर्म किया, अपने ही अग्रज के साथ छल किया और मृत्यु द्वार तक पहुँचाया। लेकिन श्री राम का साथ देने के बाद भी आज तक किसी और का नाम विभीषण नहीं रखा गया। 

रामायण में अगर माली-सुमाली और मंथरा की बहस न हुई होती और मंथरा का क्रोध रक्ष जाति के प्रति न होता, नारद-कैकयी और मंथरा अन्य रानिओं द्वारा राम के वनवास की सुनियोजित उपक्रम न करते, देवता दंडकारण्य में अलग अलग जातियों में अपनी संतान उत्त्पन्न न करते और अगस्त्य ऋषि ने अभूतपूर्व समन्वयन का कार्य न किया होता आर्य और अनार्य जातियों के बीच, तो संभवतः रामायण कुछ अलग प्रकार की होती।       
असल में रामायण का प्रचार जितना ज्यादा अच्छाई और बुराई के युद्ध के रूप में दिखाई देता है उससे कई अधिक ये आर्य-अनार्य सभ्यताओं का युध्द था।        
                                                                        - अक्स 


सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

काश!!! पढ़ लिख कर कोई समझदार हो पाता।



काश!!! पढ़ लिख कर कोई समझदार हो पाता।

मेरे ऑफिस के पास (सेक्टर ६२ नॉएडा ) रस्ते में कुछ गाय आवारा घूमती रहती हैं और लोग रुक रुक कर (पड़े लिखे अनपढ़ - आपके मेरे जैसे) गाय को घर से बचा हुआ खाना देते हैं और साथ में पॉलिथीन मुफ्त।
मैंने कई बार रुक कर पॉलिथीन उठा कर उन सज्जनों को वापस देता हूँ, पॉलिथीन उठाने को कहता हूँ, वो लोग हाँ तो कहते हैं पर खुद नहीं उठाते तो खुद ही उठा कर उन्हें देता हूँ और पूछता हूँ की पूण्य कमाने के चक्कर में कहीं पाप तो नहीं कमा रहे? गाय को पॉलिथीन भी खिला रहे हो और सड़क पर कचरा भी फैला रहे हो ???
कुछ लोग तो रोटी ऐसे फेंक कर जाते हैं जैसे उस रोटी की कोई वैल्यू ही न हो, न किसी ने कोई मेहनत की उसे उगाने में, न ही किसी ने पीसने में आपके घर तक लाने में, और शायद जो फेंक रहा है उसने भी पैसा कमाने में कोई मेहनत नहीं की।
सब बड़े ही खतरनाक ढंग से घूरते हैं मुझे और फिर वो पॉलिथीन लेते हैं, लेकिन आज तो हद्द ही हो गयी, आज वाले आदमी ने भागने की कोशिश की लेकिन गायों ने रास्ता रोक रखा था ,आज मेरे साथ मेरा दोस्त अनूप Anoop Aswal भी था, अनूप को अपना स्कूटर पकड़ा कर मैंने उस आदमी को उसकी पन्नी पकड़ाई ,उसने ले लिया लेकिन थोड़ा आगे जा कर वो पन्नी फेंक दी वहीँ सड़क पर और भाग गया।
असल में हमारा बेसिक ही गलत है :( शिक्षा तंत्र की नाकामी से ज्यादा हमारे संस्कारों की नाकामी है, सभ्यता संस्कृति और प्रकृति का समन्वयन हम नहीं कर पाते।
(इन सब लोगों के गले में लगे पट्टों से पता चलता है कि ये बी.टेक्, एम बी ए प्रजाति के हैं और किसी बहुदेशीय कंपनी के पालतू हैं।)
कैसे लोग हैं ये ??? कौन हैं ये???
कहीं आप तो नहीं हैं न?

https://atulsati.blogspot.in/2016/10/blog-post.html

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

ज़िन्दगी तेरा तजुर्बा और तेरा तर्जुमा !!!


मैं अपना समझ, 
कुछ कह रहा था, 
वो मेरा तजुर्बा था।   
तुम जो समझ कर,
खफा हुए 'अक्स',
वो मेरी बात का,
गलत तर्जुमा था। 
कुछ तो तर्जुमा ही,
गलत हो गया,
और कुछ तजुर्बा ही,
गलत हो गया। 
ज़िन्दगी तेरा तजुर्बा,
और तेरा तर्जुमा,
उफ़्फ़!!!
सही हुआ या गलत,
पर जो भी हुआ,
हो ही गया।    
     
                                      - अतुल सती 'अक्स'  

बुधवार, 28 सितंबर 2016

तसल्ली

कभी कभी बस यूँ ही, 
तुमको देखता हूँ, 
तो ,
बड़ी तसल्ली  सी होती है। 
गोया, रूह ,जिस्म से रुखसत होने ही लगी थी,
 कि तुम आ गयी। 
रुह,
कुछ देर और रुक गयी,
 इस जिस्म में,
खैर! एक न एक दिन तो,
 जाएगी ही 'अक्स',

पर तुमको देख बड़ा सुकून,
 नसीब हुआ मुझे। 
आज भी जब कभी,
तुमको देखता हूँ ,
तो ,
बड़ी तसल्ली सी होती है।

जैसे, कभी भीड़ में,
 कहीं खो जाता है कोई बच्चा,
और निगाहें तलाशने लगती हैं, 
किसी अपने को, 
रात काली है,
घुप्प अँधेरा है,
शोर है,भीड़ है। 
बदहवासी का सा माहौल है और तभी,
 तुम दिखाई दी ,
मेरी ओर आती, बाहें फैलाये,
मुझे पुकारती, 
जब तुम्हे देखा तो बड़ी राहत सी हुई। 
आज भी जब कभी,
तुमको देखता हूँ तो बड़ी तसल्ली सी होती है। 


सोमवार, 26 सितंबर 2016

आज

एक दूजे से,

दूर रहकर,

किसी और के,

हमदम बन कर,

आज,

जिन्दा तू भी है,

जिन्दा मैं भी हूँ।


झूठे इश्क को,

सच्चा कहकर,

फिर झूठी,

सारी कसमें खाकर,

आज,

शर्मिंदा तू भी है,

शर्मिंदा मैं भी हूँ।

                               - अतुल सती 'अक्स'     


सोमवार, 12 सितंबर 2016

यकीन कर

सब ठीक हो जायेगा सच्ची !!!
यकीन कर।  
मैं माफ़ करता हूँ तुझको उन सब की ओर से जो तुझसे नाराज़ हैं,
अब तू भी मुझे माफ़ कर दे, वो समझ कर जिससे तू नाराज़ है। 
कल जो था वो आज तक नहीं टिक पाया,
और ये आज भी कल तक गुजर जायेगा,
इसीलिए तो कह रहा हूँ,
अगर तू पढ़ पा रहा है इस बात को,
तो यकीन कर,
ये तेरे लिए ही है,
सच्ची,
आँख बंद कर और यकीन कर,     
सब ठीक हो जायेगा सच्ची !!!
यकीन कर।  
       
                    - अक्स 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

लोग


बिजां देर तक मी देखदु रयुं वे ढुंगु ते 'अक्स'
जे ते देबता बुन्ना छां लोग, पूजणा छां लोग। 
नौ भी नि पता वे कु कई सणें, कि कु होलु वू,
फेर भी मने शांति ते खोजणा छां वे मा लोग। 
सेली पड़ी जिकुड़ी मा जब देखि मिन अफ्फु ते,
अपरा ही मन का घोर मा टंग्यां सीसा मा, 
पता नि ,
अफ्फु ते बिसरी की वे ढुंगु मा क्या खोजणा छां लोग। 


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बहुत देर तक मैं देखता रहा उस पथ्थर को 'अक्स'
जिसे देवता कह रहे थे लोग, पूज रहे थे लोग। 
नाम भी नहीं पता था कई को कि कौन होगा वो, 
फिर भी उसी में मन की शांति खोज रहे थे लोग।
मन को बहुत शांति मिली जब मैंने खुद को देखा,
अपने ही मन के घर में टंगे शीशे में,
पता नहीं,
खुद को भूला कर उस पत्थर में क्या खोज रहे थे लोग।